बिहार में जातिगत जनगणना की रोक: पटना उच्च न्यायालय का फैसला
पटना उच्च न्यायालय ने हाल ही में बिहार सरकार द्वारा आयोजित की जा रही जातिगत जनगणना को रोक दिया है।
इस फैसले का प्रमुख कारण है समवर्ती सूची में नाम शामिल करने के लिए संघ, राज्य और समवर्ती सूची के निर्धारण में समस्याएं होना।
इस लेख में हम इस फैसले के पीछे की वजहों को समझेंगे और इससे जुड़े सवालों के उत्तर भी देंगे।
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पटना HC ने क्यों रोकी जातिगत जनगणना?
हाल ही में पटना उच्च न्यायालय ने एक बड़ा फैसला दिया है, जिसमें वे राज्य में जातिगत जनगणना को रोकने के लिए आदेश जारी किया हैं।
यह निर्णय भारत के राजनीतिक और सामाजिक विवादों के बीच आया है।
इस लेख में हम जानेंगे कि पटना HC ने इस फैसले के पीछे क्या कारण हैं और इसके बारे में अधिक जानकारी देंगे।
जातिगत जनगणना क्या है?
जातिगत जनगणना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें लोगों की जाति, धर्म, भाषा और अन्य विवरणों का आकलन किया जाता है। इससे सरकार को विभिन्न योजनाओं के लिए आवश्यक आंकड़े मिलते हैं। जातिगत जनगणना का पहला संचालन सन् 1872 में किया गया था और इसे प्रत्येक दस वर्षों में आयोजित किया जाता है।
समवर्ती सूची क्या है?
समवर्ती सूची एक ऐसी सूची होती है जिसमें एक विशेष समुदाय के लोगों के नाम शामिल होते हैं।
इसे संघ और राज्य द्वारा तैयार किया जाता है और इसमें उन समुदायों के नाम शामिल होते हैं जो सरकार के निर्धारित मापदंडों को पूरा करते हैं।
इससे समुदाय को विभिन्न सरकारी योजनाओं एवं उपलब्धियों का लाभ मिलता है।
जातिगत जनगणना पर सरकार का तर्क
जातिगत जनगणना भारत में बहुत महत्वपूर्ण है। यह जनसंख्या और जाति के अनुसार विभाजित की जानकारी प्रदान करती है। हालांकि, जातिगत जनगणना पर सरकार के तर्कों में कुछ लोगों के अलग-अलग मत हैं। इस लेख में, हम जातिगत जनगणना पर सरकार के तर्कों पर विस्तार से विचार करेंगे।